मनुष्य में होने वाले भ्रूणीय परिवर्धन (Embryonic Development in Human)

    Biology (Zoology) ~ Simple knowledge


     मनुष्य में भ्रूणीय परिवर्धन (Embryonic Development in Human)


 • भ्रूणोद्भवन (Embryogenesis) ~   

 युग्मनज (Zygote) में कोशिका विभाजन व कोशिकीय विभेदन से भ्रूणीय विकास को मानव भ्रूणोद्भवन कहते है। 

यह प्रक्रिया क्रमिक विकास मनुष्य में एक कोशिकीय युग्मनज से प्रारंभ होकर नवजात शिशु के विकास तक होती है।

   

   विदलन (Cleavage) एवं तूतकभवन (Morulation) ~ 


मनुष्य में निषेचन की क्रिया अंडवाहनी के फैलोपियन नलिका में संपन्न होती है , जहां पर आपको पता है शुक्राणु ओर अंडाणु संयुग्मन से द्विगुणित युग्मनज (Zygote) का निर्माण करते हैं। युग्मनज में होने वाले शुरूआती समसूत्री विभाजनों को ही तो विदलन कहते हैं। इस विदलन की शुरुआत तभी हो जाती है जब युग्मनज अंडवाहिनी से गर्भाशय की तरफ बढ़ता है।

सबसे पहले युग्मनज समसूत्री विभाजन द्वारा दो समान कोशिकाओं में विभाजित होता है , जिसे द्विकोशीक अवस्था (Two celled stage) कहते हैं। उसके बाद समसूत्री विभाजन से इन दो कोशिकाओं में से बड़ी कोशिका विभाजित होकर तीन कोशिका अवस्था (Three cell stage) बनती है। इसके बाद विभाजनों का क्रम बढ़ता जाता है और कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है परन्तु युग्मनज का आकार वहीं रहता है।

तूतक (Morula) ~ 

जब कोशिकाओं की संख्या 16 हो जाती है तब इस ठोस अवस्था को तूतक कहते हैं।

तूतक निर्माण तक की क्रिया पूर्ण होने तक जोना पेल्यूसिडा नामक आवरण बना रहता है इस तूतक निर्माण की क्रिया को तूतकभवन (Morulation) कहते हैं। यह क्रिया तीन दिनों में पूर्ण हो जाती है। तूतक का बाह्य आवरण यानि जोना पेल्यूसिडा भ्रूण को गर्भाशय के अन्यत्र रोपण से बचाता है। 

     ~ कोरकभवन Blastulation ~


 तूतक से कोरकपुट्टी (Blastocyst) के निर्माण की प्रक्रिया को ही कोरकभवन (Blastulation) कहते हैं।

गर्भाशय में तूतक के पहुंचने पर इसकी बाह्य घनाकार (Cuboidial) कोशिकाएं चपटी कोशिकाओं की पर्त बना लेती है जिसे पोषकोरक (Trophoblast) कहते हैं। इन्हीं कोशिकाओं से भ्रूण गर्भाशयी एपिथिलियम से चिपक जाता है।

गर्भाशयी तरल के तूतक में स्राव होने से पोषकोरक , आंतरिक कोशिका समूह (Inner cell mass) से अलग हो जाती है इससे एक गुहा का निर्माण होता है जिसे कोरकगुहा (Blastocoel) कहते हैं। इसमें तरल भरा रहता है जैसे जैसे तरल की मात्रा बढ़ती जाती है है ,गुहा का आकार बढ़ता जाता है और आंतरिक कोशिका समूह भ्रूण के एक सिरे पर स्थित हो जाता है। पोषकोरक कोशिकाएं भी अत्यन्त चपटी हो जाती है तो इस अवस्था को कोरकपुट्टी (Blastocyst) के नाम से जाना जाता है।

पोषकोरक कोशिकाओं की सहायता से कोरक पुट्टी गर्भाशयी एण्डोमिट्रियम से चिपक जाता है। कोरकपुट्टी के गर्भाशय भित्ति से चिपकने की क्रिया रोपण (Implantation)कहलाती है,मानव में रोपण का प्रकार अंतराली (Intestitial) कहलाता है , क्योंकि धीरे धीरे कोरकपुट्टी को चोरों और से गर्भाशयी एण्डोमिट्रियम घेर लेती है। इसके फलस्वरूप कोरकपुट्टी गर्भाशयी अंत:स्तर में अंतः स्थापित हो जाती है , इसे आरोपण कहते हैं।

आरोपण के बाद आंतरिक कोशिका समूह एक्टोडर्म (बाह्य स्तर) तथा एंडोडर्म (अंतः स्तर) में विभेदित हो जाती है। इस एक्टोडर्म व एंडोडर्म के मध्य मीसोडर्म यानि मध्य स्तर का निर्माण होता है। कोरकपुटी से इन तीन जनन स्तरों का निर्माण गेस्ट्रलाभवन कहलाता है। इस क्रिया में कोशिकाएं अपने भावी स्थानों की और अमीबीय गति कर पहुंचती है।

         जनन स्तरों का भवितव्यता                           (Fate of germinal layers) ~ 


तीन जनन स्तरों में से प्रत्येक स्तर शरीर के निश्चित ऊतकों , अंगों तथा तंत्रों का निर्माण करता है। इन स्तरों का भ्रूण तथा वयस्क में भविष्यता को भी पढ़ें।
मानव में भ्रूणीय अवस्थायें 


  मानव में भ्रूणीय अवस्थाओं का सारांश ~

  1.  पहला सप्ताह ~ गर्भाशय के 24 से 30 घंटों में निषेचन , 48 घंटों में दूर कोशिक अवस्था तीसरे दिन मोरूला का निर्माण , चौथे दिन कोरकपुट्टी गर्भाशय गुहा में प्रविष्ट होती है। 7 से 8वें दिन रोपण की क्रिया संपन्न होती है।
  2. दूसरा सप्ताह ~ कोरकपुट्टी गर्भाशयी एंडोमिट्रियम में पूर्ण प्रवेश कर जाती है। भ्रूणीय बिम्ब एवं बाह्य भ्रूणीय झिल्लीयों का निर्माण पूरा हो जाता है। 14वें दिन आदि रेखा (Primitive streak) का निर्माण हो जाता है।
  3. तीसरा से छठे सप्ताह ~ तीसरे सप्ताह में एंडोडर्म व मीसोडर्म नामक जनन परतों का निर्माण होता है। 20वें दिन तंत्रिका भवन (Neurulation) होने लगता है। 28वें दिन ह्रदय का धड़कना शुरू (113 beat/mt.) , ग्रसनी चाप निर्मित तथा भ्रूण के चारों ओर एम्रिओटिक द्रव (Amniotic fluid) की मात्रा बढ़ने लगती है। मस्तिष्क का तीव्र विकास होता है। फुफ्फुस व गुर्दे दिखाई देने लगते हैं।
  4. छठें:से आठवें सप्ताह ~ बाहर की ओर से कान उभरने लगते है। यकृत में RBC का निर्माण शुरू ,तनपुट का छठें सप्ताह में निर्माण ,स्तनाग्रों का निर्माण, सातवें सप्ताह कोहनियां व अंगुलियां दिखाई देनी शुरू , 7 वें सप्ताह अस्थि निर्माण की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है। आठवीं सप्ताह के अंत तक एक छोटे मनुष्य की भांति भ्रूण का आकार हो जाता है। अब इसे गर्भ (Foetus) कहते हैं। हृदय पूर्ण विकसित हो जाता है और 167 बार प्रति मिनट धड़कता है। आठवीं सप्ताह में 80% भ्रूणों में दाहिना हाथ क्रियाशील हो जाता है नहीं तो बायां हाथ। यही दांये या बांये हाथ के व्यवहार का प्रथम साक्ष्य है। आठवें सप्ताह भ्रूण करवट लेता है और थोड़ा सक्रिय होने लगता है। आंख की पलके विकसित होने लगती है। आठवां सप्ताह भ्रूणीय अवधि की समाप्ति होती है इस समय तक प्रौढ़ व्यक्ति में पाई जाने वाली संरचना का 90% से अधिक भाग विकसित हो जाता है।
  5. नौ से बारहवें सप्ताह ~ नौ वें सप्ताह में अंगूठा चूसना आरम्भ कर देता है। हाथ पैरों में गतिया संभव है। पलके बंद हो जाती है कंठों में वाक् रज्जु विकसित होने लगते हैं। इस दौरान बाह्य लिंग विकसित हो जाते है। जिससे लड़का या लड़की की पहचान संभव है। 9वें व 10वें सप्ताह में भार का 75% तक बढ़ जाता है। 11वें सप्ताह में गर्भस्थ शिशु जम्हाई लेने लगता है ,और अधिकांश शिशु दाहिना अंगूठा चूसने लगते हैं। 10वें से 11वें सप्ताह में अंगुलियों के निशान व नाखून पूर्ण विकसित हो जाते हैं।
  6. तीसरे से चौथे महीने तक ~ मुंह में स्वाद नलिकाओं का विकास ,नवजात शिशु ग्रहण की गई ग्लूकोज को आंत्र द्वारा पचाता है और मिकोनियम शिशु के द्वारा निष्कासित मल होता है। बालिका गर्भस्थ शिशु नर की तुलना में अधिक चलती है। दांतों का विकास होने लगता है। मां को स्पष्ट रूप में शिशु हलचल का पता चलना शुरु लगता है इसे क्लिक्निंग कहते हैं।
  7. चार से छः महीने ~ श्वसन नलिकाओं का पूर्ण विकास ,गर्भस्थ शिशु एक सफेद द्रव से ढ़क जाता है जिसे वर्निक्स कहते है। शिशु के श्रवनांग व आंतरिक कर्ण पूर्ण विकसित हो जाते है ,और शिशु उच्च ध्वनि तीव्रता के प्रति प्रतिक्रिया करता है। छठे महीने सिर पर बाल उगने लगते हैं। त्वचा में विभिन्न ग्रंथियों का विकास प्रारंभ हो जाता है फेफड़ों में सांस लेने की क्षमता का विकास हो जाता है।
  8. छः महीने से जन्म तक ~ छठे महीने में शिशु पलके झपकाने लगता है इस समय मस्तिष्क में तेजी से वृद्धि और इसका भार बढ़ जाता है। 7वें माह में अश्रु ग्रंथि विकसित हो जाती है सूंघने की क्षमता का विकास हो जाता है गर्भस्थ शिशु चेहरे की अभिव्यक्ति बदलता है त्वचा के नीचे भूरी वसा का निर्माण होता है ,जो जन्म के बाद ताप नियंत्रण में सहायता करता है। 8वें माह में फुफ्फुस में कूपिकाओं का विकास होने लगता है गर्भस्थ शिशु के आंवल से स्त्रावित एस्ट्रोजन से माता को प्रसव दर्द होने लगता है जिससे बच्चे का जन्म हो जाता है।

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