पाचक ग्रंथियां एवं उनके कार्य(Diegestive glands)

जीवविज्ञान {जूलोजी} सरल नोट्स

पाचक ग्रंथियां  एवं उनके कार्य          

(Diegestive glands)

मानव के आहारनाल से संबंधित तीन पाचक ग्रंथियां होती है 1.लार ग्रंथियां   2.यकृत 3.अग्न्याशय।

1. लार ग्रंथियां 
(Salivary Glands) 

 


मानव में 3 जोड़ी लार ग्रंथियां होती है इन्हें अधोजिव्हा अधोजंभ एवं कर्णपूर्व ग्रंथियां कहते हैं। इन ग्रंथियों द्वारा स्रावित लार मुख गुहिका में आती हैं। लार क्षारीय तरल होता है। इसमें जल , टायलिन,लाइसोजाइम,श्लेष्मा एवं सोडियम क्लोराइड , पोटेशियम बाइकार्बोनेट आदि के उपस्थित होते हैं टायलिन पाचक एंजाइम है। लाइसोजाइम जीवाणुओं को नष्ट करने का काम करता है।





2.यकृत(Liver)



यकृत मानव शरीर की सबसे बड़ी पाचक ग्रंथि है जिसका निर्माण भ्रूण की एंडोडर्म से होता है।स्वस्थ‌‌ मनुष्य में यकृत का भार (Weight) 1.2से 1.5किलोग्राम होता है। यकृत लगभग 15 से 22 सेंटीमीटर चौङा होता है। यकृत तनुपट(डायफ्राम)
के नीचे दांयी तरफ स्थित होता है। यकृत में दो प्रमुख पालिया होती है    ~
दांयी पालि तथा बांयी पालि।  दांयी पालि बांयी पालि से बङी होती है। इसके अतिरिक्त दो और पालिया (Lobes) और होती हैं इन्हें क्वार्डैट तथा कॉडेट (Quadrate and caudate) पालियॉ (Lobes) कहते हैं।

दॉयी पालि की निचली सतह पर एक पतली दीवार का थैलेनुमा हरे रंग का  पित्ताशय (Gall bladder)  होता है। पित्ताशय मैं यकृत कोशिकाओं द्वारा स्रावित पित्त (Bile)संचित रहता है पित्त पीले हरे रंग का होता है इसमें पित्त वर्णक(Bile pigments) तथा पित्त लवण (Bile salts) हैं। यह क्षारीय पदार्थ होता है।



दोनों यकृत पिंडो से निकली यकृत वाहिनियां
मिलकर  सामान्य यकृत वाहिनी बनाती हैं। सामान्य यकृत वाहिनी(Hepatic duct ) तथा पित्ताशय की वाहिनी ( Cystic duct) के मिलने से सामान्य पित्त वाहिनी (Common Bile duct) बनती है। इसे डक्टस कोलोडोकस  (Ductus colodochus) भी कहते हैं। यह पित्त रस को ग्रहणी में पहुंंचाती है। सामान्य  पित्त वाहिनी मनुष्य की ग्रहणी की समीपस्थ भुजा में खुलती  हैं। इसके खुलने के स्थान पर एक कपाट पाया जाता है।  जिसे ओढ़ाई  का अवरोधिनी कहा जाता है। (Sphincter of  oddi) कहते हैं।  ओढ़ाई की अवरोधिनी इस छिद्र का नियंत्रण करती है।



यकृत के बारे में और जानें

यकृत का निर्माण अनेक यकृति पालिकाओं (Hepatic lobules) द्वारा होता है। ये यकृत की क्रियात्मक इकाई होती हैं। यकृत पालिका का निर्माण यकृत कोशिकाएं(Hepatocytes)करती हैं। यकृत कोशिकाओं की पंक्तियों के बीच संकरे अवकाश होते हैं। इन अवकाशों को यकृती कोटरियॉ (Sinusoids) कहते है। इनकी भित्ति से संलग्न कुफ्फर कोशिकाएं (Kupffercells)इनको महाभक्षकाणु भी कहते हैं। ये जीवाणुओ तथा जीर्ण -शीर्ण  रक्ताणुओं का विघटन करती हैं। पालिकाओं के बीच में इनके बाहरी कोनों पर यकृत धमनी , यकृत निवाहिका शिरा तथा पित्त वाहिनी की शाखाऐं स्थित होती हैं। ये तीनों मिलकर निवाहिका त्रिक (Portal triad) हैं।


            यकृत के प्रमुख कार्य 

 यकृत के 9 निम्न कार्य है। 




1.पित्त का निर्माण -
                               यकृत का मुख्य कार्य पित्त रस का निर्माण करना होता है। पित्त हरे रंग का क्षारीय तरल होता है। इसमें पित्त लवण,पित्त वर्णक , कोलेस्टरोल ,लेसीथिन आदि  पदार्थ होते हैं। पित्त लवणों में मुख्यत: सोडियम बाईकार्बोनेट, ग्लाइकोकोलेट एवं टॉरोकोलेट प्रमुख होते हैं। पित्त वर्णकों में प्रमुख बीलीवार्डिन तथा बीलीरूबिन होते हैं। पित्त वर्णक हीमोग्लोबिन के विखंडन से बनते है। पित्त रस वसाओं के पाचन में महत्वपूर्ण भाग लेता है और इनका पायसीकरण (Emulsification) करता है। यह भोजन को सङने से रोकता है। भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है। यह भोजन की अम्लीयता को समाप्त कर क्षारीय बनाता है ताकि अग्नाशयी रस के एंजाइम क्रिया कर सके 



जाने ग्लाइकोजिनेसिस के बारे में
(About the glycogenesis)


2.यकृत की कोशिकाऐं आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज की मात्रा को ग्लाइकोजन में बदलकर संग्रह कर लेती है। इस क्रिया को ही  ग्लाइकोजिनेसिस (Glycogenesis) कहते हैं।


3.जब रक्त में शर्करा की कमी होने लगती है तो यकृत की कोशिकाऐं संग्रहीत ग्लाइकोजन को पुनः ग्लेकोज में बदलकर कमी को पूरा कर देती हैं। इस क्रिया को ग्लाइकोजिनोलाइसिस कहते हैं।


4. यकृत कोशिकाएं वसीय अम्ल, अमीनो अम्ल आदि से भी ग्लूकोज का  संश्लेषण कर लेती है। इसे ग्लूकोनिओजिनेसिस कहते हैं।



5. यकृत कोशिका में विटामिन A का संश्लेषण व संचय करती है विटामिन D व विटामिन B12 का संचय करती है।


6. यकृत कोशिकाऐं यूरिया का संश्लेषण करती है।

7.यकृत कोशिकाऐं हिपैरिन नामक पदार्थ बनाती है जो रूधिर वाहिनियों में रक्त को जमने से रोकता है। 


8. यकृत कोशिकाएं प्रोथोम्बिन तथा फाइब्रिनोजेन नामक रूधिर प्रोटीन का संश्लेषण करती है जो चोट लगने पर रक्त का थक्का जमने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है।



9.यकृत भ्रूणावस्था में रूधिरोत्पादक अंग का कार्य करता है और वयस्क अवस्था में इसके विपरीत यकृत की कुफ्फर कोशिकाऐं मृत लाल रूधिर कणिकाओं का विघटन करती है ।




मानव शरीर की दूसरी सबसे बड़ी पाचक ग्रंथि वह है अग्नाशय (Pancreas) ग्रंथि जो पाचन में सहायक होती है। यह कहीं हार्मोन्स स्रावित करती है।




3.अग्न्याशय (Pancreas) 


यह मानव शरीर की दूसरी सबसे बड़ी पाचक ग्रंथि है। यह ग्रहणी की दोनों भुजाओं के मध्य पायी जाती है। यह अनियमित आकार की मिश्रित ग्रंथि है क्योंकि यह बहि :स्रावी व अंत :स्रावी दोनों प्रकार के कार्य करती है। इसका निर्माण उद्भव  भ्रूण की एंडोडर्म से होता है। इस ग्रंथि में दो प्रकार के कोशिका समूह पाये जाते है।




दो प्रकार के  कोशिका समूह



* एसिनाई (Acini)

यह  बहि:स्रावी कोशिकाओं का समूह है जो कि संयोजी उत्तक के बीच-बीच में पाया जाता है इन कोशिकाओं द्वारा ही अग्न्याशय रस (Pancreas joice) का निर्माण होता है।




*लैंगरहैंस की द्विपिकाऐं (Islets of Langerhans)


यह अंत :स्रावी प्रकृति के कोशिका समूह है जो कि एसिनाई कोशिका समूह के मध्य कहीं --कहीं पर पाये जाते हैं। इसमें तीन प्रकार के अंत:स्रावी कोशिका समूह होते हैं जो अलग -अलग प्रकार के हार्मोन्स का स्राव करते हैं। 

(A) एल्फा कोशिकाऐं  ( Alfa cells ) -

यह ग्लूकोगॉन हार्मोन का स्राव करती है।



(B) बीटा कोशिकाएं ( Bita cells)


यह इंसुलिन हार्मोन का स्राव करती हैं।



(C) गामा या डेल्टा कोशिकाऐं (Gama or Delta cells)


ये सोमेटो स्टेटिन , गैस्टीन व सीरेटोनिन नामक हार्मोन्स (Hormones) का स्राव करती हैं।





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Science knowledge (Dinesh singh) par


Comments

Dinesh Singh said…
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