मानव का श्वसन तंत्र ( Respriatory system of human)

 जीवविज्ञान {जूलोजी} सरल नोट्स

मानव का श्वसन तंत्र

(Respriatory system of human)


जाने श्वसन तंत्र के बारे में तो आज का अध्याय है श्वसन तंत्र के बारे में तो पाऐ पूरी तरह से जानकारी


आप जानते हैं कि जो सजीव ह़ोते है उन्हें अपनी जैविक क्रियाओं के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो उन्हें ऊर्जाकीआवश्यकता खाद्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। 





श्वसन तंत्र (Respriatory system )-

श्वसन एक जैव रासायनिक क्रिया है , जो जीवित कोशिकाओं में उपस्थित भोजन के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा (Engery ) जल कार्बन डाइऑक्साइड प्राप्त होती है। यह ऊर्जा  रासायनिक ऊर्जा ATP के रूप में संग्रहित होती है कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकाल दी जाती है।

                श्वसन के प्रकार


श्वसन  दो प्रकार का होता है - (1) बाह्म श्वसन  (2) आंतरिक या कोशिकीय श्वसन।

 
(1) बाह्म श्वसन (ExternalRespriatoio) - 

                                         प्राणीयों की        कोशिकाऐं पर्यावरण से ऑक्सीजन अंदर ग्रहण करती है और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकाल ने की क्रिया बाह्म श्वसन   कहलाती हैं।

श्वसन एक तरह की भौतिक प्रक्रिया हैं क्योंकि  इसमें कोशिकाऐं पर्यावरण से ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड का लेन - देन करती हैं।
इसे ही सॉंस -लेना (Breathing) or Ventilation) संवातन कहते हैं।


(2) आंतरिक श्वसन -
 
सजीव ऑक्सीजन का उपयोग कर कार्बन डाइऑक्साइड व ATP के उत्पादन के संम्बधित प्रक्रियाऐं संपन्न करते हैं उसे आंतरिक श्वसन कहते हैं।



         आंतरिक श्वसन के दो प्रकार होते हैं-                

(१) जब आंतरिक श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है तब इसे ऑक्सी श्वसन (Aerobic respiration) कहते हैं।  ‌‌‌‌‌‌‌  

(२) अनॉक्सी श्वसन (Anerobic respiration ) - 

                  जब आंतरिक श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है तब इसे  अनॉक्सी श्वसन कहते हैं।



     मानव के श्वसन अंग एवं श्वसन तंत्र

(Respiratory organ and respiratory    system of human)



मानव में गैसीय विनिमय के लिए एक सुविकसित श्वसन तंत्र पाया जाता है।

श्वसन तंत्र निम्न भागों से मिलकर बना है

 नासा द्वार  , नासा गुहा  ,नासा ग्रसनी ,कंठ ,श्वासनली , श्वसनी एवं फेफड़ों से मिलकर श्वसन तंत्र बना होता है। फेफड़े मानव में मुख्य श्वसन अंग का कार्य करते हैं।  बाकी की संरचनाऐं श्वसन मार्ग बनाती हैं। फेेेेफङो मेंं उपस्थित  वायुकूपिकाएं  श्वसन सतह का कार्य करती हैं।

मानव में बाह्म नासा छिद्र जो एक जोङी नासा द्वार में खुलते हैं। वायु नासा द्वार से नासा गुहा (Nasal cavity) में जाती है। नासा द्वारों में रोम तथा श्लेष्मा उपस्थित होते हैं । नासा द्वारों में वायु गर्म होती है उस वायु को रोम द्वारा नम किया जाता है तथा सूक्ष्म कणों को श्लेष्मा द्वारा रोक लिया जाता है जिससे सूक्ष्म कण फेफड़ों तक नही पहुंच पाते हैं क्योंकि श्लेष्मा तथा रोम वायु को छान लेते हैं।  नासा मार्ग  अस्थियों से मिलकर बना होता है उन अस्थियों के नाम हैं  नेजल , प्रीमैक्सिला व मैक्सिला ,एथेमॉएड हैं।
नासा गुहा अंदर की तरफ नासा द्वारों के माध्यम से नासा ग्रसनी में खुलती हैं। यहां से वायु पीछे की तरफ कंठ ग्रसनी में खुलती हैं और कंठ ग्रसनी कंठ के माध्यम से श्वास नली से जुडती हैं।
कंठ की संरचना त्रिभुजाकार कक्ष के समान होती है। कंठ की भित्ति जिसे उपास्थियां सहारा प्रदान करती हैं।
इसमें प्रमुख उपास्थियां अवटु (Thyroid),मुद्रिका (Cricoid),दर्विकाभ (Arytenoids) तथा एपीग्लोटिस होती हैं।
ध्वनी उत्पन करने का कार्य स्वर रज्जु करते हैं जो कंठ में उपस्थित होते हैं। कंठ का जो छिद्र होता है उसे घांटी कहते है ,जो आगे श्वासनली में खुलता हैं।

श्वासनली 

श्वासनली लगभग 12 सेंटीमीटर लम्बी नली होती है। जो कंठ से वक्ष गुहा तक फैली होती है। वहॉ से यह दो श्वसनियों में बंट जाती है। श्वासनली व श्वसनियों की भित्ति पर C आकार के छल्ले पाए जाते है। जिसे C आकार की उपास्थियां सहारा प्रदान करती है। 
श्वसन मार्ग की भित्ति पर श्लेष्मा कोशिकाऐं एवं पक्ष्माभी कोशिकाऐं उपस्थित होती है। श्लेष्मा में फंसे हुए जीवाणु ओर सूक्ष्म कणों को पक्ष्माभों द्वारा ग्रसनी में लाया जाता है ओर श्लेष्मा को निगल लिया जाता हैं।


मानव की वक्ष गुहा में ह्रदय के पास दो फेफङे स्थित होते है। दाया फेफड़ा तीन तथा बाया फेफड़ा दो पालियों से निर्मित होता है। इन फेफड़ों को दो  फुफ्फुसावरण घेरे रहते हैं। इन  फुफ्फुसावरणों के बीच में तरल भरा रहता है। फुफ्फुसावरणों के बीच में एक कोटर होता है जिसमें वायु नहीं होती है। फेफड़ों को पिचकने से कोटर बचाते हैं क्योंकि दोनों फेफड़ों के कोटर अलग-अलग होते हैं। यदि दुर्घटना के कारण कोटरो में वायु प्रवेश कर लेती है तो फेफड़े पिचक जाती हैं। पर्शुका पिंजर फेफड़ों को घेर कर सुरक्षा प्रदान करता हैं। गुम्बद आकार का तनपुट वक्ष गुहा को उदर गुहा से अलग रखता है।
मानव के प्रत्येक फेफड़े में श्वसनी प्रवेश करती है जो आगे उप विभाजित होकर फेफड़े के अंदर द्वितीयक ,तृतीयक श्वसनी,श्वसनीकाऐं अंतस्थ शवसनिकाएं तथा श्वसन श्वसनिकाऐं बनाती हैं।
वर्सन श्वसनिकाऐं वायुकूपिका वाहिनी में उप विभाजित होती हैं जो आगे वायु कूपिका कोश में खुलती हैं। प्रत्येक कोश में वायु कूपिकाओं का समूह जुड़ा हुआ होता हैं। दोनों फेफड़ों में लगभग साठ करोड़ वायु कूपिकाऐं होती हैं। श्वसन श्वसनिकाऐं, वायु कूपिका वाहिनी ,कोश एवं वायु कूपिकाऐं  मिलकर एक श्वसन इकाई बनाती हैं।
वायु कूपिकाऐं गैसीय आदान-प्रदान की प्रमुख सतह हैं।

प्रत्येक वायु कूपिका अत्यंत प्याले समान संरचना है , इसकी  अत्यंत  पतली  भित्ति   में   रुधिर केशिकाओ का जाल होता है ,जिसमें रुधिर एक सतह परत के रूप में बहता है।




श्वसन की क्रिया विधि

(Mechanism of Respiration)

मानव की श्वसन की क्रिया विधि दो चरणों में पूर्ण होती है -(१) निश्वसन   (२) उच्छवसन



(1) निश्वसन याअंत:श्वसन (Inspiration)

वायु का शरीर में प्रवेश करना निश्वसन कहलाता है। इसे इन्हेलेशन के नाम से जाना जाता है।

निश्वसन सक्रिय क्रिया विधि है जो तनुपट (Diaphragm) एवं बाह्म अंतरापर्शुक पेशियों के संकुचन से प्रारम्भ होती है। जब तनुपट संकुचित होता है तो वह चपटा हो जाता है। तनुपट संकुचन के समय उदर की तरफ नीचे चला जाता है , जिससे वक्ष गुहा का आयतन बढ़ जाता है और अंतरापर्शुक पेशियां भी संकुचित हो जाती हैं तथा पसलियां संकुचन से बाहर की ओर खींच जाती हैं। दोनों क्रियाओं के फलस्वरुप वक्ष गुहा का आयतन बढ़ जाता है। जिससे वक्ष गुहा एवं फेफड़ों में वायु का दाब वायुमंडल के दाब से कम हो जाता है वायु दाब में इस अंतर के कारण वायुमंडल से वायु श्वसन मार्ग से होती हुई वायु कूपिकाओं में तेजी से तब तक भरती रहती है , जब तक कूपिकाओं का दाब वायुमंडल के दाब के बराबर ना हो जाये।

वायु प्रवेश का मार्ग किस प्रकार का होता है :-

‌‌नासाद्वार - नासागुहा - आंतरिक नासा छिद्र - ग्रसनी - घांटी - श्वासनली - श्वसनियां - श्वसनिकाएं- वायुकूपिका वाहिनी - वायु कूपिका कोश - वायु कूपिकाऐं । इस तरह वायु का फेफड़ों में प्रवेश ही निश्वसन कहलाता है।


(2) उच्छवसन (Expiration) - 
                                             वायु  (कार्बन डाइऑक्साइड) की फेफड़ों से होते हुए शरीर से बाहर निकलने की प्रक्रिया उच्छवसन कहलाता है। इन्हें एक्हेलेेेशन भी कहते हैं।

विश्राम की स्थिति में यह निष्क्रिय प्रावस्था है क्योंकि निश्वसन के बाद उच्छवसन होता है इसमें बाह्म अंतरापर्शुक पेशियां एवं तनुपट की पेशियां शिथिलित होती हैं तब यह पसलियां स्वंय के भार के कारण नीचे बैठ जाती हैं और तनुपट वक्ष गुहा में ऊपर की ओर उठ जाता है। इसी कारण वक्ष गुहा का आयतन कम हो जाता है तो इसका वायुदाब वायुमंडलीय दाब से अधिक हो जाता है। जिससे फेफड़े संपीडित हो हो जाते हैं और फेफड़ों में दाब बढ़ जाता है। वायु कूपिकाओं से वायु श्वसन मार्ग से होते हुए बाहर वायुमंडल में चली जाती है।

व्यायाम एवं शारीरिक श्रम के समय  उच्छवसन सक्रिय अवस्था हो जाती हैआंतरिक अंतरापर्शुक पेशियां तेजी से संकुचित होती है और पसलियों को नीचे की ओर खींचती हैं , जिससे वक्ष गुहा का आयतन कम हो जाता है।
मानव में विश्राम अवस्था में वयस्क की श्वसन दर  16 - 20 प्रति मिनिट होती है।


श्वसन सम्बंधी आयतन -

1.ज्वारीय आयतन 
(Tidal Volume,T V)

सामान्य श्वसन के समय एक निश्वसन में फेफड़ों में भरी गई वायु का आयतन या एक उच्छवसन में निकाली जाने वाली वायु का आयतन ज्वारीय आयतन कहलाता है।
ज्वारीय आयतन का माप  T.V = 500ml होती है।
स्वस्थ मनुष्य लगभग 6000 से 8000 मिली , वायु प्रति मिनिट की दर से निश्वसन या उच्छवसन कर सकता है।

(2) निश्वसन आरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume , IRV) - 

वायु की वह अधिकतम मात्रा जिसे व्यक्ति बलपूर्वक निश्वासित कर सकता है । इसकी मात्रा  2500 मिली .से 3000 मिली . होती है।

(3) उच्छवसन आरक्षित आयतन (Expiratory ReserveVolume,ERV)


वायु की वह अधिकतम मात्रा जिसे एक व्यक्ति  बलपूर्वक उच्छवसित कर सकता है।
इसकी मात्रा 1000 से 1100 मिली होती है। 

(4) अवशिष्ट आयतन (Residual Volume , RV)

वायु का वह आयतन जो बलपूर्वक उच्छवसित के बाद भी फेफड़ों में शेष रह जाता है ,उसे अवशिष्ट आयतन कहते हैं।
औसतन यह 1100 मिली से 1200 मिली. होता है।


श्वसन संबंधी क्षमताऐं 

(Capacities related to                     respiration)

1. नि:श्वसन क्षमता (Inspiratory Capacity , IC) -

वायु की वह अधिकतम मात्रा जो एक नि:श्वसन में ग्रहण की जा सकती हैं। इसमें ज्वारीय आयतन तथा नि:श्वसन आरक्षित आयतन सम्मिलित हैं। इसका माप 3500 मिली.होता है।

2.उच्छवसित क्षमता (Expiratory Capacity , EC) :-

आयु की अधिकतम मात्रा जो एक उच्छवसित में बाहर निकाली जाती है इसमें ज्वारीय आयतन और  उच्छवसित आरक्षित आयतन सम्मिलित  हैं। जिसे TV+ERV कह सकते हैं।

3. क्रियाशील अवशिष्ट क्षमता (Functional Residual Capacity , FRC):-

सामान्य उच्छवसन के बाद जो वायु की अतिरिक्त मात्रा फेफड़ों में शेष रह जाती है। जिसमें उच्छवसित आश्रक्षित आयतन तथा अवशिष्ट आयतन साथ में होते हैं। इसकी मात्रा     2300मिली. होती है।


4.जैव क्षमता (Vital Capacity):-

यह फेफड़ों में अधिकतम भरी गई तथा अधिकतम निकाली गई वायु होती है। इसका मान VC=[IRV +TV]+ERV के बराबर होता हैं। इसकी मात्रा 4600 मिली. होती है।

5. फेफड़ों की कुल क्षमता :-(Total Lung Capacity , TLC)-

अधिकतम प्रयास के बाद फेफड़ों में भरी जा सकने वाली अधिकतम वायु की मात्रा को कुल फेफड़ों की क्षमता कहते हैं । इसका मान TLC = VC+ RV के बराबर होता है उसका माप लगभग 5800 मिली. होता है।



                  कृत्रिम श्वसन

             (Artificial Respiration)


जाने कृत्रिम श्वसन के बारे में तो पढ़ें और जानकारी पाए कृत्रिम श्वसन के बारे में -

जब किसी व्यक्ति की दुर्घटना हो जाए जैसे  डूबना, कार्बन मोनोऑक्साइड , वैधुत प्रघात में श्वास रुक जाए और ह्रदय की स्पंदन चल रही हो तो कृत्रिम श्वसन देकर मनुष्य जीवन को बचाया जा सकता है।

कृत्रिम श्वसन के कई तोर तरीके ज्ञात है इनमें से मुख्य तरीका जो वर्तमान में प्रचलित है वो है मुख से मुख श्वसन विधि जो अधिक कारगर है।
इस तरीके को अपनाने के लिए निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखकर कृत्रिम श्वसन देते हैं।

° रोगी को सीता लेटा देना है उसके बाद अपने एक हाथ को रोगी के माथे पर दूसरा हाथ रोगी की गर्दन के नीचे लगाकर गर्दन को इस तरीके से ऊपर करो जिससे गर्दन खींच जाये तथा जिव्हा गले के पिछले हिस्से से अलग हो जाये। ताकि श्वसन मार्ग खुल जाये।

• माथे माथे पर रखे हाथ से रोगी की नाक बंद करते हुए कृत्रिम श्वसन देने वाला व्यक्ति अपना मुख रोगी के मुख पर इस प्रकार रखें  वायु अवकाश न रहे यानि वायु मुख से बाहर न निकलें गर्दन के नीचे हाथ को वैसे ही रखें ताकि गर्दन खिंची रहे।

• रोगी के मुख में 1 मिनट में लगभग 12 बार ज्वारीय आयतन से दुगुनी हवा भरें।

• रोगी के मुख एवं नाक को खुला छोड़कर जांचें की रोगी श्वास लें रहा है।

इस प्रकार कंचन शासन के द्वारा रोगी को दुबारा जीवित किया जा सकता है। इसके लिए कहीं प्रकार के यांत्रिक उपकरण भी उपलब्ध होते हैं।

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