मानव में युग्मकजनन (Gametogenesis in Human)

 जीवविज्ञान ज्ञान      

     मानव में युग्मकजनन (Gametogenesis in Human )

      what   is   Gametogenesis 
     (Biology Zoology Knowledge)


युग्मकजनन करता है :~   

आध जनन कोशिकाओं (Primordial sex cells) के द्वारा जनदों में युग्मकों का निर्माण युग्मकजनन कहलाता है।

शुक्राणु जनन व अंडाणु जनन की क्रिया से वर्षण एवं अंडाशय में आध जनन कोशिकाओं द्वारा शुक्राणुओं एवं अंडाणुओं का निर्माण होता है।
द्विलिंगी (Bisexual) प्राणियों में नर तथा मादा युग्मक एक ही प्राणी द्वारा उत्पन्न किये जाते है जबकि एक लिंगी प्राणियों में नर द्वारा शुक्राणु तथा मादा द्वारा अंडा उत्पन्न किये जाते हैैं।

युग्मकजनन की क्रिया (Follicle stimulating hormone) के द्वारा संपन्न होती है।

शुक्रजनन , शुक्राणु जनन (Spermatogenesis) :~  

वृषण में आद्द जनन कोशिका के द्वारा शुक्राणु निर्माण शुक्राणु जनन कहलाता है। वृषण के भीतर दो प्रकार की कोशिकाएं कायिक या सरटोली कोशिका व जनन कोशिका पाई जाती है। सरटोली कोशिका शुक्राणुओं को आलम्बन तथा पोषण प्रदान करती है इसमें शुक्राणु का सिर धंसा रहता है। जनन कोशिका शुक्राणुओं को उत्पन्न करती है। 

वृषण में शुक्रजनन की क्रिया मनुष्य में लगभग 74दिन में संपन्न होती है।

1.शुक्राणुपूर्व का निर्माण (Spematocytogenesis) :~ 

यह प्रक्रिया जंतु में लैंगिक परिपक्वता प्राप्त करने के पश्चात् शुरू होती है। प्राइमोडियल या आद्द जनन कोशिकाओं से स्पर्मेटिडों का निर्माण तीन भागों में पूरा होता है ~

(अ) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)

अविभेदित आद्द जनन कोशिका सतत सूत्री विभाजन के द्वारा कोशिकाओं का निर्माण करती है जिन्हें शुक्राणु मातृक कोशिकाएं (Spermatogonia) कहते हैं। स्पर्मेटोगानिया द्विगुणित कोशिका होती है।

(ब) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase ) :~ 

गुणन अवस्था के अंतिम विभाजन  के पश्चात जनन कोशिकाओं से पोषण प्राप्त कर स्पर्मेटोगोनिया कुछ आकार में दो गुनी हो जाती हैं , इन्हें प्राथमिक शुक्राणुजन कोशिका (Primary Spermatocyte) कहते हैं, जो कुछ द्विगुणित होती है। वृद्धि प्रावस्था सबसे लम्बी प्रावस्था होती है।

 (स) परिपक्वन अवस्था (Maturation phase) :~  प्राथमिक शुक्राणु कोशिका में से अर्धसूत्री विभाजन प्रथम विभाजन के बाद दो अगुणित द्वितीय शुक्राणुजनन कोशिका बनती है।

       मानव शुक्राणु की संरचना    

लैंगिक प्रजनन के दौरान ,अंडे को सक्रिय करने तथा गुणसूत्रों के अगुणित समुच्चय प्रदान करने के लिए नर युग्मक या कहों तो शुक्राणु अत्यधिक विशिष्ट कोशिश है। स्तनधारी शुक्राणु को तीन भागों में बंटा गया हैं - 

(अ) शीर्ष (Head) : - 

एक्रोसोम तथा केन्द्रक से बना होता है आनुवंशिक कार्य के लिए अयुग्मित गुणसूत्र केन्द्रक में प्रोटेमीन प्रोटिन के साथ पाया जाता है। एक्रोसोम शुक्राणु के आगे के सिरे पर केन्द्रक तथा प्लाज्मा झिल्ली के मध्य स्थित होता है। शुक्राणु शीर्ष पर अम्लीय प्रोटीन एंटी फर्टिलाइजिन (Antifertilizin) पाया जाता है तथा अंदर लायजिन एंजाइम - हायलयूरोनीडेज एवं केटेफीन पाये जाते हैं।     

(ब) मध्य खंड (Mid piece ) :~

मध्य खंड जो शीर्ष भाग से ग्रीवा के द्वारा जुड़ा रहता है। ग्रीवा में दो तारक केन्द्र समान लेकिन कार्य प्रणाली अलग अलग होती है।

समीपस्थ तारककेन्द्र -  
समीपस्थ तारककेन्द्र का कार्य निषेचन के बाद माइटोटिक तर्कु (Spindle) के निर्माण में सहायक होता है। जो मुख्य अक्ष में लम्बवत स्थित होता है।

दूरस्थ तारककेन्द्र :~ 
इसका कार्य शुक्राणु की अक्ष का निर्माण करना होता है। दूरस्थ तारक केन्द्र आधार काय (Basal body) का कार्य भी करती है। अक्षीय तंतु की रचना कशाभिका के समान ९+२ प्रकार की होती है।

(स) पूंछ (Tail) :-

 शुक्राणु का सबसे लंबा भाग पूंछ द्वारा निर्मित होता है वह तीखा होता है।

शुक्राणु में संचित भोजन , राइबोसोम ,अंतः द्रव्यी 
जालिका केन्द्रिक तथा आरएनए इनका अभाव होता है।

नर के वृषण की शुक्रजन नलिकाओं द्वारा शुक्राणु त्यागे जाते हैं जो सहायक वाहिका द्वारा एपिडिडीमीस , शुक्रवाहिनी ,शुक्राशय ,प्रोस्टेट के स्रावों के साथ स्थानान्तरित होते हैं जो शुक्राणु की परिपक्वता एवं गतिशीलता हेतु आवश्यक होते हैं। वीर्य का निर्माण शुक्राणु के साथ शुक्र प्लाज्मा द्वारा होता है। मानव के नर द्वारा लगभग 200 से 300 मिलियन शुक्राणु एक बार में त्यागे जाते हैं।

नर व मादा में होने वाली युग्मकजनन क्रियायें (नर में निर्मित चारों युग्मक शुक्राणु क्रियाशील होते हैं लेकिन मादा में सिर्फ एक युग्मक  यानि अंडाणु विकसित होता है।)

अण्डजनन ,अण्डाणुजनन (Oogenesis) -


मादा के अण्डाशय में अंडाणु जनन की क्रिया शुक्राणु जनन की तुलना में अधिक जटिल है इसमें चार अगुणित कोशिकाओं के अलावा पीत्रक का संचय होता है। अंडाणु जनन के दौरान जनन उपकला से कोशिका पृथक हो जाती है तथा अंडाशय के वल्कुट  में प्रवेश करती है। यह द्विगुणित पृ्र्णशक्ता युक्त कोशिका होती है जिसे आद्द जनन कोशिका कहते हैं।

यह क्रिया तीन पदों में संपन्न होती है :~ 

१.गुणन प्रावस्था (Multiplication phase) :~  

  आद्द जनन कोशिका जो मातृक कोशिका में बदलती इसमें लगातार  सूत्री विभाजन द्वारा ऊगोनिया का निर्माण होता है। एक ऊगोनिया अंडाणुजनन में भाग लेता है शेष ऊगोनिया पोषक कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती है जन्म के बाद न ऊगोनिया जुड़ते न ही बनते हैं।

२.वृद्धि प्रावस्था (Growth phase) :-

जरुरत पोषक पदार्थों का संश्लेषण तथा निक्षेपण इस प्रावस्था में होता है। इसे प्राथमिक अंडक (Primary oocyte ) कहते हैं।

३.परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase) :- इसमें अर्धसूत्री विभाजन होता है जिसके अंतर्गत दो विभाजन होते हैं पहला अर्धसूत्रीविभाजन में प्राथमिक अंड कोशिका दो असमान कोशिकाओं में बंटती है। एक विशाल पीतक युक्त होती है तथा दूसरी काफी छोटी होती है। बड़़ी अंड कोशिका द्वितीयक अंड कोशिका तथा ‌‌‌दूसरी ध्रुव काय कहते हैं।

इसके बाद दोनों कोशिकाओं में द्वितीयक अर्धसूत्री विभाजन होता है यह भी असमान होता है जिसके फलस्वरुप बड़ी पीतक युक्त संतति कोशिका ऊटिड अर्थात वास्तविक अंडाणु तथा कोशिका द्वितीयक पोलर काय (Second polar body ) कहलाती है। प्रजनन में केवल अंडाणु भाग लेता है और बाकी पोलर काय प्रजनन में भाग नहीं लेती हैं तथा लास्ट में नष्ट हो जाती है।

कई जंतुओं में अंडजनन की परिपक्वन प्रावस्था में केवल प्राथमिक अर्धसूत्री विभाजन ही होता है तथा निषेचन तक द्वितीय अंड कोशिका में कोई विभाजन नहीं होता है क्योंकि द्वितीयक अर्धसूत्री विभाजन अंड कोशिका में निषेचन के साथ साथ होता है।

हरेक प्राथमिक ऊसाईट कणिकीय (Granulosa) कोशिकाओं से घिरे रहते हैं जिन्हें प्राथमिक पुटिका (Primary follicle) कहते हैं। 

पुटिकाएं जन्म से वयस्कता तक बड़ी संख्या में नष्ट होते जाते हैं जिसमें मादा के प्रत्येक अंडाशय में केवल 60000 से 80000 तक प्राथमिक पुटिकाएं मौजूद रहते हैं।

प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन हेतु वृद्धि करता है अर्धसूत्री विभाजनों के बाद तृतीयक फॉलिकल परिपक्व ग्राफियन पुटिका में बदल जाती है अर्द्धसूत्री विभाजन के बाद बनी द्वितीयक ऊसाईट के चारों ओर नई झिल्ली जोना पेल्यूसिडा बन जाती है। इसको अंडाशय से त्यागा जाता है जिसे अंडोत्सर्जन कहते हैं।

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