मानव का तंत्रिका तंत्र (Nervous System of man)
जीवविज्ञान {जूलोजी} सरल नोट्स
~ मानव का तंत्रिका तंत्र ~
(Nervous system of man)
शरीर के विभिन्न अंगों के समस्त कार्यों में संतुलन एवं सामंजस्य बनाकर शरीर पर नियंत्रण करने वाला जो तंत्र होता है उसे तंत्रिका तंत्र कहते हैं।
इसमें कार्य करने वाली कोशिकाओं को तंत्रिका कोशिकाएं कहते हैं जिसे तंत्रिका तंत्र की क्रियात्मक इकाई भी कहते हैैं।
• सिनेप्सिस - एक तंत्रिका कोशिका के तंत्रिका काय (Cyton) के डेन्ड्राइट्स दूसरी कोशिकाओं के तंत्रिकाक्ष से विशिष्ट संधि द्वारा जुड़े रहती है इसे ही सिनेप्सिस कहा जाता है।
तंत्रिका तंत्र के कार्य (Functions of nervous system) -
• यह शरीर के विभिन्न्न अंगों की अलग-अलग क्रियाओंं को संचालित एवं नियंत्रित करता है।
• यह संवेदी अंगों के माध्यम से बाहर की दुनिया के विषय में सूचना देता रहता है।
• यह समस्त ऐच्छिक पेशीय क्रियाकलापों जैसे की दौड़ना ,बोलना आदि का भी नियंत्रण करता है।
• यह अनेक अनैच्छिक क्रियाकलापों जैसे कि सांस लेना ,हृदय का स्पंदन , आहार नाल में भोजन का संचलन आदि का भी नियमन करता है।
प्राणियों में तंत्रिका तंत्र
प्राणी शरीर में अनेक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय दो तंत्रों द्वारा संपन्न होता है इनमें से
(अ) तंत्रिका तंत्र (ब) अंत:स्रावी तंत्र
तंत्रिका तंत्र के निम्न भाग होते हैं -
(1). केंदीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) -
इस तंत्र में सूचना कार्यवाही (सूचना प्राप्त करना और उसके प्रति अनुक्रिया करना ) की जाती है। मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु इस तंत्र में आते हैं।
(2). परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System ) -
इसके अंतर्गत मस्तिष्क से निकलने वाली क्रेनियल तंत्रिकाएं एवं मेरुरज्जु से निकलने वाली स्पाइनल तंत्रिकाएं आती हैं।
(3). स्वायत तंत्रिका तंत्र (Autonomous Nervous system)
(1). केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र
(Central Nervous system) -
• मस्तिष्क (Brain)
मनुष्य के शरीर का सबसे अधिक कोमल अंग मस्तिष्क होता है , जो करोटि के कपाल के अंदर सुरक्षित रहता है। मस्तिष्क के ऊपर तीन मस्तिष्कावरण ,झिल्लीयां पाई जाती है ,जो मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान करती है।
• दृढतानिका (Duramater):-
यह सबसे बाहरी झिल्ली होती है यह बड़ी तथा मोटी होती है एवं फाइब्रस संयोजी उत्तक एवं कोलेजन तंतुओं की बनी होती है यह क्रेनियम अस्थियों से जुड़ी होती है एवं अप्रत्यास्थ या नॉन इलास्टिक होती है।
• जालतानिका (Arachnoid) :-
यह मध्य स्तर होता है। इसका निर्माण कोमल कॉलेजन तंतुओं एवं इलास्टिक तंतुओं द्वारा होता है।
• मृदुतानिका (Piamater) :-
यह आंतरिक झिल्ली , पतली , मुलायम तथा पारदर्शी होती है जो मस्तिष्क के चिपकी हुई पाई जाती है। इस आवरण में रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है जिससे मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु को पोषण तथा ऑक्सीजन प्राप्त होती रहती है।
रक्तक जालक -
मृदुतानिका दो जगह पर सूक्ष्म उभारों के रूप में मस्तिष्क की गुहा में लटकी रहती है।
सब्डुरल गुहा (Subdural cavity) -
यह दृढतानिका तथा जालतानिका के बीच की जगह होती है।
सब -अरेकनोइड गुहा (Subarachnoid cavity)- यह जालतानिका तथा मृदुतानिका के बीच स्थित होती है। इन गुहाओं में प्रमस्तिष्क मेरु द्रव भरा रहता है। यह क्षारीय द्रव होता है यह मस्तिष्क को बाहरी आघातों से बचाता है।
प्रमस्तिष्क मेरु द्रव (Cerebro spinal fluid) -
प्रमस्तिष्क मेरु द्रव -
मृदुतानिका में स्थित रक्तक जालिकाओं से लसीका के समान द्रव स्त्रावित होकर व छनकर बाहर निकलता रहता है , इसे ही प्रमस्तिष्क मेरु द्रव कहते हैं।
इस द्रव में प्रोटीन , ग्लूकोज , यूरिया एवं क्लोराइड्स के अलावा पोटेशियम , सोडियम , कैल्शियम के बाइकार्बोनेट , सल्फेट , फॉस्फेट ,क्रिएटिनिन तथा यूरिक अम्ल भी कम मात्रा में उपस्थित होते हैं एक स्वस्थ मनुष्य में लगभग 150 मिली मात्रा पाई जाती है। यह द्रव आगे से पीछे की ओर बहता रहता है तथा यहां से यह सब अरेकनोइड गुहा में होता हुआ अंत में दृढ़तानिका की रूधिर वाहिनियों के माध्यम से वापस रुधिर में आ जाता है।
इसके कार्य -
• यह मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु की बाह्म आघातों से सुरक्षा करता है तथा यह इन्हें नमी भी प्रदान करता है।
• यह मस्तिष्क एवं रुधिर के मध्य विभिन्न पोषक पदार्थों के विनिमय का माध्यम प्रदान करता है इसके साथ ही यह ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड का भी विनिमय करने का माध्यम प्रदान करता है।
• यह हानिकारक लोगों से मस्तिष्क व मेरुरज्जु की सुरक्षा तथा मस्तिष्क की बीमारियों के निदान में सहायता प्रदान करता है। प्रमस्तिष्क मेरू द्रव की मात्रा अधिक बढ़ने के कारण मस्तिष्कावरण शोथ रोग हो जाता है।
मस्तिष्क की रचना (Structure of brain) -
मस्तिष्क के तीन भाग होते हैं -
(1) अग्र मस्तिष्क (Fore brain)-
यह मुख्य दो भागों में बंटा हुआ है प्रमस्तिष्क (Cerebrum) एवं अग्र मस्तिष्कपश्च (Diencephalon) से मिलकर बना होता है। यह मस्तिष्क का महत्वपूर्ण भाग बनाता है जो संपूर्ण मस्तिष्क का लगभग 2/3 भाग का निर्माण करता है।
(अ) प्रमस्तिष्क (Cerebrum) -
यह अग्र मस्तिष्क का सबसे विकसित एवं सबसे बड़ा भाग होता है। यह दो दांए एवं बायें भागों में बंटा होता है जिन्हें प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध कहते हैं।
प्रमस्तिष्क का बायां गोलार्द्ध शरीर में दायें भाग का और दायां गोलार्द्ध शरीर के बायें भाग का नियंत्रण करता है।
घ्राण पिंड (Olfactory lobe) :-
प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध के आगे की और दों पिंड और पाए जाते हैं जिन्हें घ्राण पिंड कहा जाता है। ये पिंड गंध का उद्दीपन करते हैैं।
प्रमस्तिष्क के कार्य
• यह मानसिक (दिमागी) काम जैसे सोचना, विवेेचना ,योजना बनाना ,याद करना आदि का कार्य करता है।
• यह ज्ञानेन्दियों जैसे - नेत्र , कान ,नाक आदि से आने वाली सूचनाओं को ग्रहण करता है एवं उनका विश्लेषण करता है। इन सूचनाओं पर कार्यवाही भी करता है।
• यह ऐच्छिक पेशी - संकुचनों को आरंभ करता है और उनका नियंत्रण करता है।
(ब) अग्र मस्तिष्क (Diencephalon) -
यह प्रमस्तिष्क के पीछे एवं नीचे स्थित होता है तथा प्रमस्तिष्क गोलार्द्धों तथा मध्य मस्तिष्क के बीच स्थित होता है। इसकी गुहा द्विकगुहा के साथ मिलकर एक विलन युक्त संरचना बनाती है जिसे अग्र कोरोइड प्लेक्सस कहते हैं। यह अत्यंत संवेदी होती है। इसके दो भाग होते हैं -
• थैलैमस (Thalamus) :-
यह धूसर द्रव्य (Grey matter) से बना अंडाकार आकृति का एक पिंड होता है जो प्रमस्तिष्क के नीचे बीच में स्थित होता है। यह उन संवेदी आवेगों जैसे पीड़ा और सुख के लिए प्रसारण का कार्य करता हैं जो प्रमस्तिष्क को जाती हैं।
• हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) :-
यह प्रमस्तिष्क गोलार्धों के आधार पर पीछे की तरफ एवं थैलेमस के नीचे स्थित होता है यह प्रेरित व्यवहार , जैसे - भूख -प्यास और काम भावना का नियंत्रण करता है यह पीयूष ग्रंथि से स्रावित होने वाले हार्मोन भी नियंत्रित करता है हाइपोथैलेमस शरीर के तापमान का भी नियंत्रण करता है इसके साथ साथ शरीर के अंदर तरलों की मात्रा का भी नियमनकारी केंद्र एवं रुधिर दाब (Blood pressure)का भी नियंत्रण रखता है।
(2) मध्यमस्तिष्क (Midbrain)
यह मस्तिष्क का बीच का भाग है ,इसे मिसेनसिफैलोन भी कहा जाता है।
इसके दो भाग होते हैं-
(अ) कोर्पोरा क्काड्रीजेमिना (Corpora quadrigemina) -
मनुष्य के मध्य मस्तिष्क में दो इंफीरियर अॉप्टिक लोब तथा दो सुपीरियर अॉप्टिक लोब पाए जाते हैं। यह मध्य मस्तिष्क के पृष्ठ सतह पर टेक्टम से जुड़े हुए पाए जाते हैं। यह देखने और सुनने से संबंधित उद्दीपनों को ग्रहण करते हैं।
(ब) प्रमस्तिष्क वृन्तक (Cerebral penduncle) -
यह मध्य मस्तिष्क के आगे पाई जाते हैं। इन्हें क्रूरा सरेब्री भी कहते हैं। यह तंतुओं का बना हुआ बंडल होता है जो सेरिब्रल कोर्टेक्स को मेरुरज्जु तथा मस्तिष्क के अन्य भागों के साथ जोड़ता है।
(3) पश्च मस्तिष्क (Hind brain) -
यह मस्तिष्क का अंतिम भाग होता है।
यह तीन भागों से मिलकर बना है-
(अ) अनुमस्तिष्क Cerebellum) -
यह मस्तिष्क का अपेक्षाकृत छोटा भाग हैजो प्रमस्तिष्क के आधार पर उसके नीचे स्थित होता है इसकी पृष्ठ सतह अधिक विकसित होती है। इसमें संवलनों के स्थान पर अनेक खांचे होती है।इसका वल्कुटी भाग भी धूसर द्रव्य का बना होता है। इसके दो कार्य हैं :-
• शरीर का संतुलन बनाए रखना
•पेशीय क्रियाओं में समन्वय बनाए रखना।
(ब) पोन्स वेरोलाई (Pons varolli) :-
यह मेंडूला अॉब्लोंगेटा के ठीक ऊपर तथा प्रमस्तिष्क वृन्तक के नीचे पाया जाता है यह सेरिबेलम की दोनों पालियों को जोड़ता है। यह मस्तिष्क के अन्य भागों को भी जोड़ने का कार्य करता है। इसके साथ-साथ यह चर्वण अररिया ,लाल ,श्रवण ,अश्रुस्रवण तथा नेत्रों की गतिशीलता में भी मध्यवर्ती नियंत्रण का कार्य करता है।
(स) मेड्यूला अॉब्लॉगेटा :-
यह मस्तिष्क का अंतिम भाग होता है यह त्रिभुजाकार होता है तथा पोंस एवं मेरुरज्जु के मध्य स्थित रहता है जो मेरुरज्जु से जुड़ा होता है।
इसकी गुहा को मेटासील कहते हैं।
इसके कार्य -
• यह सांस लेने , खांसने , निगलने आदि का केंद्र होता है।
• यह हृदय की धड़कनों , रक्त दाब , आहार नाल के क्रमाकुंचन तथा अन्य अनेक अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
(ख) मेरुरज्जु (Spinal Cord) -
मेरुरज्जु मस्तिष्क के मेड्यूला अॉब्लॉगेटा से आरंभ होकर कशेरुकों की कशेरुक -नाल में से गुजरती हुई रीढ़ की संपूर्ण लंबाई में स्थित होती है। इसके ऊपर भी वही तीन चिड़िया होती है जो कि मस्तिष्क में होती है और उनके बीच के अवकाश में भी वही सेरीब्रोस्पाइनल तरल भरा रहता है।
इसमें बाहर की और की झिल्ली ड्यूरामेटर ,मध्य वाली अरेकनॉइड तथा आंतरिक झिल्ली को पॉयमेटर कहते हैं। ड्यूरोमेटर तथा अरेकनॉइड के बीच की गुहा को सब ड्यूरल गुहा कहते हैं।
मेरुरज्जु के कार्य
- गर्दन के नीचे प्रतिवर्तों (Reflexes) को ले जाने का कार्य करता है।
- त्वचा और पेशियों से संवेदी आवेगों को मस्तिष्क तक ले जाने का कार्य करता है।
- अनुक्रियों को मस्तिष्क से धड़ और हाथ -पैरों तक ले जाता है।
- यह स्पाइनल रिफलेक्स के केन्द्र का काम करता है।
- यह मस्तिष्क के सम्पूर्ण कार्यों में सहायता प्रदान करता है।
- इसमें भरा हुआ सेरीब्रोस्पाइनल द्रव स्पाइनल कार्ड की बाहरी आघातों से रक्षा करता है।
- यह अनेक पदार्थों का आवागमन एवं मस्तिष्क में उचित दाब बनाये रखने में सहायक होता है।
- अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय करता है।
(2).परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System ) -
परिधीय तंत्रिका तंत्र मेंफीस अभी तंत्रिका शामिल है जो मस्तिष्क और मेरुरज्जु से निकलती है मस्तिष्क से निकलने वाली तंत्रिकाओं को कपालीय तंत्रिकाएं तथा मेरुरज्जु से निकलने वाली तंत्रिकाओं को मेरु तंत्रिका कहते हैैं।
(अ) कपाल तंत्रिकायें -
मनुष्य में 12 जोड़ी कपाल तंत्रिका ए पाई जाती है। यह खोपड़ी से निकलती है। इन तंत्रिकाओं के प्रकार उनके कार्य के कारण अलग-अलग होती है। जैसे यह तंत्रिकाऐं संवेदी ,मोटर , मिश्रित होती हैं।
(ब) रीढ़ या मेरू तंत्रिकायें -
यह तंत्रिकायें मेरुरज्जु से निकलती हैं। मनुष्य में उनके 31 जोड़ी पाई जाती हैं। मेड्यूला अॉब्लेंगेटा के पीछे के हिस्से से लेकर कटि के भाग तक फैली होती है। कटि वाले भाग से ये फूल कर हाथों एवं पैरों के लिए तंत्रिकायें निकलती है।
(3).स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomous Nervous System) -
इसकी खोज लेंगले ने की थी। यह पूर्णतया चालक तथा नियंत्रण रहित होता है। यह अनैच्छिक पेशियों और ग्रंथियों को तंत्रिकाएं प्रदान करता है। यह तंत्र प्रमुख रूप से एक प्रेरक तंत्र होता है जो आंतरिक अंगों की अनैच्छिक क्रिया का नियमन करता है।
अनुकंपी तंत्रिका तंत्र -
यह शरीर को आपात परिस्थितियों में सामना करने हेतु तैयार करता है और परानुकंप तंत्रिका तंत्र आपात स्थिति के समाप्त होने पर पुनः सामान्य स्थिति में स्थापित कर देता है। यह दोनों तंत्र एक दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं तथा शरीर की सभी क्रियाओं की गतियों पर उचित नियंत्रण रखते हैं।
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र पर भावनाओं का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है जैसे दुःख ,गुस्सा ,डर , लैंगिक उद्दीपन आदि।
प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action)-
शरीर में जब इसी उद्दीपन के कारण होने वाली स्वत: तीव्र और अनैच्छिक क्रिया होती हैं , उसे प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं।
उदाहरण के लिए ~
• जब किसी गर्म तवे या किसी नुकीले से कांटे को हाथ से छूने पर तुरंत हाथ को हटा लेते हैं।
• किसी जाने -पहचाने स्वादिष्ट भोजन को केवल देखने या सूंघने भर से मुंह में पानी यानि लार आ जाना।
सरल /अप्रतिबंधित प्रतिवर्ती क्रियाएं (Uncondition Reflex Actions)
सरल या अप्रतिबंधित प्रतिवर्ती क्रियायें जन्मजात या प्राकृतिक होती हैं , जिसके लिए किसी जानकारी की कोई आवश्यकता नहीं होती एवं इन पर मस्तिष्क का नियंत्रण नहीं होता है इस प्रकार की प्रतिवर्ती क्रियाओं को सरल प्रतिवर्ती क्रियाएं कहते हैं।
~ For Examplus
• पलक तुरंत बंद कर लेेेना - किसी भी वस्तु को अचानक आंख की तरफ आते देखकर।
• खांसी आना - निगला हुआ भोजन नली में न जाकर श्वास नली में चले जाने पर ।
• तेज प्रकाश में नेत्र की पुतली सिकुड़ जाना।
• सोते हुए व्यक्ति का पैर गुदगुदाने पर ,पैर को एकदम झटका लगना।



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